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षय भी लम्बा हो जाता है आज मुझे अकबर खान राना जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ इसे दैवीय नियति ही कहेगे या फिर मेरी भाग्य हीनता लगभग सात आठ महीने लम्बे गंभीर वैचारिक संबंधो के बाबजूद मिलने का सौभाग्य नहीं मिला मै अपने आप को बहुत हीन और लज्जित मह्शूश करताहूँ मै सोचता हूँ की राष्ट्र वादिता का जो भारी ढोल मै पिछले आठ साल से मै अपने गले में डाले झूम रहा हूँ और उस पर अपनी ही थाप देकर खुद उसकी प्रति ध्वनी सुन कर मदहोश हो जाता हूँ उस राष्ट्र वादिता के भीष्म पितामाह हरियाणा के ये छोटे से गाव में उस राष्ट्र वादिता को जी रहे है मै अपने आप को तब और धन्य पाता हूँ जब राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण उनका प्रेम और उनकी अनुरुक्ति शब्दों की जहग आशुं बन कर प्रस्फुटित होती है वो येसा महान व्यक्तित्व है जिनकी व्याख्या मै कर ही नहीं सकता उनके बारे में तो बस इतना ही कहूँगा की समाज की पीड़ा को जो व्यक्ति अपनी पीड़ा समझता हो समाज की धड़कन जिसकी अपनी धड़कन से हो कर गुजरती हो उस महान आत्मा से मिलन के उन क्षणो को मैंने ठीक उसी तरह सहेज लिया जिस तरह कभी भगवान् से मिलन के क्ष णो को जिस तरह शबरी ने महात्मा गाँधी से मिलन के क्ष णो को मीरा मार्गेट ने और मार्क्स से मिलन के क्ष णो को जिस तरह उनके परम हितकारी और परम भक्त एंगेल्स ने सभाला होगा इसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है इसे यूँ समझ सकते है दुनिया के सारे इतिहासों में वर्णित दीन से दीन और महान से महान व्यक्तियों के परस्पर मिलन का जो अनुपम सुख होगा वो मैंने अनुभव किया मै आज अकेले ही उन लोगो से लड़ने की हिम्मत रखता हूँ जो ये कहते है की देश के सारे मुसलमान आतंक वादी है मै इस एक मुसलमान का उदाहरण देकर उन मुसलमानों के पाप धोने का दंभ भर सकता हूँ जो आतंक वादी है और निरुत्तर कर सकता हूँ उन लोगो को जो कहते है की मुसलमान देश भक्त नहीं होते मै हिन्दुओ मुसलमानों या फिर किसी अन्य धार्मिक माताबल्म्बी को ताल थोक कर कह सकता हूँ की आज मेरे पास एक आदर्श राष्ट्र भक्त है जो भारत का भावी कर्णा धार भी है मेरी इन बातो का मखौल भी उड़ाया जा सकता है और अकबर खान राणा प्रति इसे मेरी अंध भक्ति का नाम भी दिया जा सकता है मगर येसा व्यक्ति जिसकी करनी और कथनी ने लेश मात्र भी अंतर न हो वो जो कहता हो उसी में गर जीता हो तो उसे मै महात्मा या देव तुल्य न कहू तो फिर क्या कहूँ जो व्यक्ति राणा अपने नाम के पीछे केवल इस लिए लगाए फिरता है की भारत की अमिट संस्क्रति सभ्यता और पहिचान से उसका भी जुड़ाव उतना ही रहे जितना अन्य सभी रास्ट्र भक्तो का सच में धन्य हो गया इस व्यक्ति की सच्चाई सह्रदयता और राष्ट्र भक्ति को लेकर यहाँ मै शायद कुछ भूल रहा हूँ जितना श्री अकबर खान राणा जी मुझे दिखे निश्चय उतनी ही या मै कहूँ उससे भी गहनतम श्रीमती अकबर खान राणा जी है क्यों की किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व की बनावट के पीछे किसी स्त्री का हाथ होता है फिर वो चाहे माँ के रूप में हो या फिर पत्नी के रूप में मेरे अनुसार अकबर खान जी में जो दीखता है वो श्रीमती अकबर खान जी के संयम को कर्तव्यों की भट्टी में तपाये जाने का फल है अकबर खान राणा जी के महान व्यक्तित्व की बनाबट में श्रीमती अकबर खान जी को ठीक उसी तरह नहीं भुलाया जा सकता जिस तरह वीर शिवाजी की महानता को देख कर जीजाबाई की शिक्षअओ और उपदेशो की महत्ता को कम कर के आँका नहीं जा सकता अगर येसा होता है तो ये ठीक वैसे ही होगा जैसे महात्मा गांधी को ऊपर उठाकर कस्तूरबा गाँधी के तप और सयम को कम तर आंकना अतः श्री मति अकबर खान जी के त्याग हिम्मत और सहभागिता को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता यहाँ एक व्यक्ति जिससे मै और प्रभावित हुआ बो है अकबर खान जी के मित्र गुरुमीत जी जो अपनी इच्छाओ के झूले में झूल रहे है जिसका जिक्र मैंने प्रारंभ में किया था उम्मीद है जोइच्छाओं की इति होते ही समग्रता प्राप्त करेगे यही अकबर खान जी का प्रयाश और मेरी आशा है posted by प्रवीण शुक्ल प्रार्थी at 4 40 am 12 comments thursday march 11 2010 हाय हमें अब तोबक्श दो दाता प्रवीण पथिक जनता लाचार वादे बेकार महगाई बढती जारही है सरकार सो रही है कुम्भकर्णी नीद मुद्रा स्फीति की दर लगातार बढे जारही है और सरकार ग्रोथ रेट बढ़ने की बात करती है आम जन पिसता जा रहा है और सरकार आंकड़ो का खेल खेल रही है फिर क्यों न सरकार की जय बोले जय हो तीन चार साल के अन्दर के अन्दर चीजो के दाम आसमान छूने लगे है हर चीज पचास से सौ दो सौ प्रतिशत मूल्य ब्रद्धि कर चुकी है केवल किशानो की उपज और मजदूरों की मजदूरी छोड़ कर जनता पस्त हलाल होते बकरे सी मिमिया रही है मुनाफाखोर जमा खोर चांदी काट रहे है फिर क्यूँ न सरकार की जय बोले जय हो नेता एशो आराम और मजे के साधन जुटाए जा रहे है किसान लागत के लिए कर्ज को न चुका पाने से आत्म हत्याए कर रहे है मनमोहन जी ट्रिकल डाउन थ्योरी को पेट से सहेजे बैठे है एक अमेरिकेन अर्थशास्त्री की थ्योरी जिसके अनुसार अगर ऊपर का तबका पूंजी में बढेगा मतलब अमीर और अमीर बनेगा तो तो पूंजी का रिसाब नीचे भी होगा और गरीब तबके को भी फायदा पहुचेगा सरकार नकारा हो चुकी है आंकड़ो में छेड़ छाड़ कर गरीबी मिटाने का प्रयाश कर रहे आरक्षण की गोटी दिखा कर भूखो की भूख मिटाने का भरमाया प्रयाश किया जा रहा है ये प्रयाश ठीक वैसा ही जैसे भूखे कुत्ते को रोटी दिखा कर हम चाहे जहा ले जा सकते है एक बार फिर जय हो पर ऐसे क्या आईये इस आंकड़ो की सरकार से कुछ आंकड़ो से बात कर लेते है उदारीकरण का भूत हवा होते वादे १८ साल पहले नरसिंह राव सरकार ने जब उदारीकरण निजी करण की शुरुआत की थी तो आज के प्रधान मंत्री तब वित्त मंत्री थे उन्होंने तब ट्रिकल डाउन थ्योरी की पिपहरी बजाते हुए दावा किया था की जब समाज के शिखरों पर सम्रद्धि आएगी तो वह रिस कर नीचे तक पहुचेगी तब से १८ बर्ष बीत चुके हुआ उल्टा गरीब और गरीब हो गया और आमिर और आमिर होते जा रहे है कुछ तथ्यों में देखे १ केपजेमिनी और मेरिल लिंच द्वारा तैयार एशिया प्रशांत सम्पदा रिपोर्ट के अनुसार विगत कुछ वर्षो के दौरान भारत करोडपतियो की संख्या में ब्रद्धि दर की द्र्स्टी से पूरी दुनिया में वियतनाम के बाद दूसरे स्थान पर है दिसंबर २००७ में भारत में १ लाख तेईस हजार करोडपति थे जो एक बर्ष पूर्व के मुकाबले २३ प्रतिशत अधिक थे २ फोबर्स पत्रिका के अनुसार बर्ष २००६ में दुनिया के ९४६ अरबपतियो में ३६ भारतीय शामिल थे २००५ दुनिया में ७६८ अरब पति थे यानी एक बर्ष में विश्व स्तर पर अरब पतियों की संख्या में २६ प्रतिशत की ब्रद्धि हुई जबकि भारतीय अरब पतियों की संख्या में ६४ प्रतिशत की देश के दश सर्वोच्च ख़रब पति हर मिनट में दो करोड़ रूपए बनाते है अकेले मुकेश अम्बानी हर मिनट ४० लाख रूपए बनाते है ३ दुनिया के शीर्षस्थ ५ महाधनिको में २ भारतीय है ४ फोबर्स पत्रिका द्वारा तैयार दुनिया के अरब पतियों की सूचि में २००४ में ९ भारतीय शामिल थे जो २००७ में बढ़ कर ४० हो गए अगर इस मसले को वैश्विक स्तर पर देखे तो भारत से बहुत अमीर जपान में अरब पतियों की संख्या २००७ में महज २४ फ्रांस में १४ और इटली में १४ थी आश्चर्य तो तब होता है जब आर्थिक विकाश और तेजी से बढती गैर बराबरी के बाबजूद चीन में २००७ में केबल १७ अरब पति ही थे ५ भारत के अरब पतियों की दौलत महज एक साल में १०६ अरब डालर से बढ़ कर १७० अरब डालर हो गयी अब ये तो रही भारत में पूँजी ब्रधि जो सरकार की अमीरों और उद्धोग पतियों के साथ साठ गाँठ औरमेल जोल के कारण बढ़ी सारे मुनाफे के धंदे सरकारी सांसदों और सरकारी महको ने अपने मातहत उद्धोग पतियों को उपहार स्वरूप दे दिए अगर इसे खरी भाषा में कहे तो बेच दिए और बदले में मोटी रकम अपने स्विस और भारत में विभिन्न खातो में जमा की अर्थ शास्त्री अमित भादुड़ी के अनुसार अरब पतियों की दौलत में ६० प्रतिशत की बढोत्तरी इसलिए मुमकिन हुई क्यों की राज्य और केंद्र सरकारों ने खनन उद्धोगी करण और विशेष आर्थिक क्षेत्रो के लिए सार्वजनिक उद्देश्य के नाम पर बड़े पैमाने पर जमीन निजी कार्पोरेशनो को सौप दी ये तो रही ऊपर की बात अब जरा नीचे भी देख ले १८ बर्षो के नब उदारिबाद के दौर के बाद इक्कीसवी सदी के भारत की खासियत ये है की यह अरब पतियों की दौलत के हिसाब से अमेरिका के बाद दुनिया में दूसरे नंबर पर है लेकिन बेघरो कुपोषितो भूखो अन पढो की तादात के लिहाज से नंबर एक है एश्वर्य सम्रद्धि की चका चौंध भरी दुनिया का अन्धकार मय पहलू यह है की रास्ट्री नमूना सर्वेक्षण के अनुसार १ देश की १८ करोड़ आबादी झुग्गियो में रहती है और १८ करोड़ आबादी फुटपाथों पर सोती है निकम्मी सरकारे जिनमे वर्तमान सरकार का अधिकतम समय शासन रहा है आम आदमी को ये अदद छत भी मुहयिया नहीं करवा पायी जबकि नेताओं के बंगलो और हवेलियों की संख्या बढती जा रही है २ रास्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण भारत में प्रतिदिन उपभोग मात्र १९ रूपए और शहरी भारत में मात्र 30 रूपए है गावोँ की दस प्रतिशत आबादी प्रति दिन ९ रूपए पर गुजारा करती है आप खुद सोच सकते है इस पूंजी पर कोई कैसे गुजारा कर सकता है लाखो परिवारों को आधे पेट या भूखे ही सोना पड़ता है जबकि सत्ता रूढ़ नेताओ पर और उनके परिवारों पर औसत ३००० रूपए प्रति व्यक्ति प्रति दिन खर्चा आता है २ रास्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण भारत में प्रतिदिन उपभोग मात्र १९ रूपए और शहरी भारत में मात्र 30 रूपए है गावोँ की दस प्रतिशत आबादी प्रति दिन ९ रूपए पर गुजारा करती है आप खुद सोच सकते है इस पूंजी पर कोई कैसे गुजारा कर सकता है लाखो परिवारों को आधे पेट या भूखे ही सोना पड़ता है जबकि सत्ता रूढ़ नेताओ पर और उनके परिवारों पर औसत ३००० रूपए प्रति व्यक्ति प्रति दिन खर्चा आता है ३ नॅशनल कमीशन फार इण्टर प्राइजेज इन द अन आर्गेनाइज्ड सेक्टर की एक रिपोर्ट के अनुसार बर्ष २००४ ०५ में लगभग ८४ करोड़ लोग यानी आबादी का ७७ प्रितिशत हिस्सा रोजाना २० रुपये से भी कम पर गुजारा करता है इनमे से २२ फीसदी लोग रोजाना ११ ६० रुपये रोज़ की आमदनी यानी गरीबी रेखा से नीचे १९ फीसदी लोग रोजाना ११ ६० रुपये से १५ रुपये की आमदनी पर और ३६ फीसदी लोग १५ रूपये से २० रुपये की बीच की आमदनी पर गुजारा करते है अब बारी सरकार की जय हो बोलने की है ये निकम्मी सरकारे कितनी बेरहम और खून चूसक है जिन्हों ने ११ ६० रूपये से कम आमदनी के आदमी को गरीब माना है अगर सच में देखा जाए तो १०० रुपये की आमदनी तक का आदमी गरीब है और उसे गरीबी रेखा से नीचे मानना चहिये यानी देखा जाए भारत की ९५ प्रतिशत आबादी गरीब अब कुछ और बाते जिनकी चर्चा अगली पोस्ट में १ आम चीजो का दाम कितना बढा अरे १०० दो सौ नहीं हजार हजार प्रतिशत तक २ कुपोषण के मामलो में विश्व में हमारा स्थान 3 स्त्रियों की बदतर स्थिति में विश्व में हमारा स्थान ४ घटती औसत आयु के मामले में हमारा स्थान ५ उत्पादन ब्रद्धि फिर भी प्रति व्यक्ति आधी होती भोजन उपलब्धता जैसे और अनेक मुद्दों पर चर्चा अगली पोस्ट में posted by प्रवीण शुक्ल प्रार्थी at 2 55 am 7 comments labels गरीब भुखमरी रास्ट्र thursday december 24 2009 रास्ट्र वादिता और प्रगति हाजिर हूँ रास्ट्र वाद पर अपना चिंतन लेकर जब कभी भी सामाजिक व्यवस्थाओ में परिवर्तन होता है उनकी गति और अविरल प्रवाह में परिवर्तन होता है तब नयी व्यवस्थाये जन्मती है और धीरे धीरे पुरानी व्यवस्थाये विलुप्त होने लगती है व्यवस्थाओ के इस परिवर्तन का समाज और रास्ट्र पर बहुत व्यापक प्रभाव पड़ता है यह प्रभाव सकारात्मक या नकारात्मक दोनों ही हो सकता है यदि प्रभाव सकारात्मक है तो थोड़ी हील हुज्जत के बाद ये व्यवस्था समाज द्वारा स्वीक्रत हो जाती है और पुरानी व्यवस्था की जगह ले लेती है परन्तु यदि यही प्रभाव नकारात्मक होता है तो इसके खिलाफ रास्ट्र वाद की दुहाई देता हुआ एक प्रबुद्ध वर्ग खड़ा हो जाता है और व्यवस्था परिवर्तन का विरोध करता है आम जन उस समय कर्तव्य विमूढ़ होता है वह ना तो नयी व्यवस्था को पूर्णता अस्वीकार करता है और न ही स्वीकार ही प्रबुद्ध वर्ग द्वारा असंगत व्यवस्था परिवर्तन के विरोध को और अल्प प्रबुद्ध वर्ग यहाँ प्रबुद्ध वर्ग और अल्प प्रबुद्ध वर्ग के मेरे मानक के अनुसार चिंतन शील समाज का वह वर्ग जो प्रगति का तो विरोधी नहीं है परन्तु किसी भी व्यवस्था परिवर्तन को पूर्ण चिंतन और मनन के साथ ही स्वीकार करता है तथा भविष्य की पीढियों पर उस व्यवस्था परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ेगा इसके प्रति जाग्रत होकर ही व्यवस्था परिवर्तन को स्वीक्रति देता है प्रबुद्ध वर्ग में आता है समाज का वह वर्ग जो समाज और रास्ट्र के हितो के प्रति तो चिंतित होता है परन्तु उसका यह चिंतन सामायिक और वर्तमान परस्थितियों को लेकर ही होता है समाज और रास्ट्र पर व्यवस्था परिवर्तन के द्वारा पड़ने वाले दीर्घ गामी प्रभाव को लेकर ये वर्ग मौन होता है अल्प प्रबुद्ध वर्ग में आता है द्वारा व्यवस्था परिवर्तन के समर्थन को आंख बंद कर के ही देखता है यदि पुरानी व्यवस्था असंगत और शोषक है तो यह वर्ग उसके शोषण को तो महसूश करता है और उसके परिवर्तन की उत्कंठा भी रखता है परन्तु यह बिना चिंगारी का ईधन है जो आग को जलाए तो रख सकता है परन्तु जिसमे आग उत्पन करने की क्षमता नहीं है यही वो वर्ग है जो दोनों वर्गों प्रबुद्ध और अल्प प्रबुद्द वर्ग द्वारा आसानी से अपने साथ जोड़ा जा सकता है इस वर्ग द्वारा राष्ट्रीयता रास्ट्र वाद और रास्ट्र भक्ति की कोई स्वनिर्धारित व्याख्या नहीं होती यह विभिन्न वर्गों द्वारा निर्धारित रास्ट्र वाद की व्याख्याओ के अनुसार अपने आप को रास्ट्रवादी सिद्ध करने का प्रयाश करता रहता है अब यहाँ जो मुख्य बात पर दिखती है वह यह है की समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग रास्ट्र वाद के स्पस्ट और तर्क पूर्ण अर्थ से ही अनभिग्य है तिस पर विभिन्न राजनैतिक और सामाजिकदलों ने अपने फायदे के हिसाब से रास्ट्र वाद की मनगढंत व्यखाये करके कोढ़ में खाज का काम किया है जिससे बहुत बड़ा और दीर्घ गामी नकारात्मक प्रभाव समाज पर पड़ा और आम जन की रूचि अस्मिता और आत्म गौरव से जुड़े इन शब्दों से हट गयी इन शब्दों को इतना गूढ़ कर दिया गया की ये शब्द भारी साहित्य की तरह नीरश और भारी लगने लगे जिनका प्रयोग लिखने पढने और बोलने तक ही रह गया और आम जन का जुड़ाव इन शव्दों से ख़त्म होने लगा जब की सीधे शव्दों में देखा जाए तो अपनी अस्मिता और पहिचान को बचाए रखने के लिए नकारात्मक व्यवस्था परिवर्तन का विरोध ही प्रखर रास्ट्र वाद है और यही सच्ची रास्ट्र भक्ति है क्यों की रास्ट्र वादिता है तो रास्ट्र है और रास्ट्र है तो राष्ट्रीयता और यही रास्ट्रीयता हमारी पहिचान है तो इन अर्थो में रास्ट्र वाद कोई गूढ़ विषय न होकर वयक्तिक विषय है जो सीधे सीधे व्यक्ति विशेष से जुड़ा है रास्ट्र वाद की व्याख्या में दो सबसे महत्पूर्ण अवयव है रास्ट्र और जन रास्ट्र संस्क्रति अध्यात्म धर्म दर्शन तथा भूखंड का वह भाग है जिसमे जन निवास करते है जन किसी भी रास्ट्र में रहने वाले मनुष्यों का वह समूह जो उस रास्ट्र की सांस्क्रतिक अध्यात्मिक धार्मिक और इतिहासिक पहिचान की ऱक्षi करते हुए और उससे गौरव प्राप्त करते हुए निरंतर उस रास्ट्र की प्रगति और उत्थान के लिए प्रयाश रत रहता है जन कहलाता है यहाँ ये ध्यान देने योग्य बात है की किसी भी रास्ट्र की भौगोलिक सीमाए परिवर्तनीय हो सकती है परन्तु किसी रास्ट्र का आस्तित्व तभी तक है जब तक उसकी सांस्क्रतिक और अध्यात्मिक पहिचान जिन्दा है जिसके ख़त्म होते ही रास्ट्र विलुप्त हो जाता है और वह केवल भूखंड का एक टुकड़ा मात्र रह जाता है यही सांस्क्रतिक धार्मिक और अध्यात्मिक पहिचान जन में राष्ट्रीयता का बोध कराती है परन्तु एक जो चीज सबसे महत्व पूर्ण है वह ये है की रास्ट्र और जन एक दुसरे के पूरक तो है परन्तु रास्ट्र सर्वोच्च है जन के पतन से रास्ट्र का शनै शनै पतन तो होता है परन्तु रास्ट्र के पतन से जन का सर्व विनाश हो जाता है अतः रास्ट्र की सर्वोच्चता और अस्तित्व को बनाये रखना प्रत्येक जन का कर्तव्य है क्यों की रास्ट्र है तो जन रास्ट्र प्रेम की यही भावना रास्ट्र वाद है जिसमे व्यक्तिगत हितो को तिरोहित करके संघ समाज समूह के विस्तर्त वर्ग में अपना हित देखा जाता है यही त्याग की भावना रास्ट्रवादी होने का गौरव प्रदान करती है अगर इसे सीधे शब्दों में देखे तो अपनी पुरातन उर्ध गामी व्यवस्था संस्क्रति और गौरव को बचाए रख कर प्रगति के मार्ग पर बढ़ना ही सच्चा रास्ट्र वाद है यही राष्ट्रीयता की भी सच्ची पहिचान है जो आज कल विभिन्न राजनैतिक दलों संगठनों द्वारा प्रचारित रास्ट्र वाद की व्याख्या से सर्वथा अलग है अगर हम विभिन्न राजनैतिक दलों और संगठनों द्वारा प्रचारित रास्ट्र वाद का विश्लेषण करे तो तो हम यही पाते है की उनके द्वारा प्रचारित रास्ट्र वाद अधूरा रास्ट्र वाद है और वे पूर्ण रास्ट्र वादिता का समर्थन नहीं करते क्यों की कोई भी वाद एक के द्वारा स्वीकार्य तथा दूसरे के द्वारा अस्वीकार्य और दूसरे के द्वारा स्वीकार्य और पहले के द्वारा अस्वीकार्य हो कर प्रखर रास्ट्र वाद की व्याख्या नहीं कर सकता इसे हम धर्म से भी नहीं जोड़ सकते क्यूँ की हम किसी विशेष धर्म को रास्ट्र वादी और दूसरे को रास्ट्र विरोधी तब तक नहीं मान सकते जब तक उस धर्म के मानने वाले रास्ट्र वाद की परिक्षi में पास या फेल नहीं होते अब हम फिर उसी विषय पर आ जाते है की आखिर रास्ट्र वाद है क्या क्या किसी एक वर्ग विशेष द्वारा प्रतिपादित मानको को पूरा करना रास्ट्र वाद है या फिर दूसरे वर्ग द्वारा निर्धारित मानको को पूरा करना सच्चा रास्ट्र वाद है इसे हम आधुनिक परिपेक्ष में सबसे विवादस्पद विषय वन्दे मातरम को ले कर देख सकते है एक वर्ग विशेष इसके गायन को प्रखर रास्ट्र वाद और इसके विरोध को रास्ट्र द्रोह मानता है वही दूसरा वर्ग इसके गायन की बाध्यता को धार्मिक स्वतन्त्रता का हननमानता है अब इन दोनों में किसे रास्ट्र वादी कहा जाए और किसे नहीं यहअपर मै अपने विचार स्पस्ट करना चाहूँगा की किसी व्यक्ति के अन्दर रास्ट्र वाद को डर भय प्रलोभन और बाध्यता के द्वारा नहीं पैदा किया जा ...
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