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में पलवल हरियाणा दक्षिण में ग्वालियर मध्य प्रदेश पश्चिम में भरतपुर राजस्थान और पूर्व में एटा उत्तर प्रदेश को छूती हैं ब्रज भाषा रीति रिवाज पहनावा और ऐतिहासिक तथ्य इस सीमा के सहज आधार हैं मथुरा वृन्दावन ब्रज के केन्द्र हैं मथुरा वृन्दावन की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है एशिया भारत उत्तर प्रदेश मथुरा उत्तर 27 41 पूर्व 77 41 मार्ग स्थिति राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 दिल्ली आगरा मार्ग पर दिल्ली से 146 किलो मीटर आज का दिन २८ मार्च २०२४ भारतीय समयानुसार आज का दिन कॅलण्डर और हलचल के लिए कृपया भारतकोश पर जाएँ भारतकोश पर आपको और भी बहुत कुछ मिलेगा यहाँ क्लिक करें यदि दिनांक सूचना सही नहीं दिख रही तो कॅश मेमोरी समाप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें इतिहास कुछ लेख अक्षौहिणी अहमदशाह अब्दाली आर्य कनिष्क कुसुम सरोवर कृष्ण संदर्भ क्लीसोबोरा गोकुल सिंह फ़ाह्यान महमूद ग़ज़नवी महाजनपद राबाटक लेख शेरशाह श्रावस्ती साकेत सूरजमल हुएन सांग हेमू ब्रज की मान्यता मथुरा की बेटी गोकुल की गाय करम फूटै तौ अनत जाय मथुरा ब्रज क्षेत्र की बेटियों का विवाह ब्रज में ही होने की परम्परा थी और गोकुल की गायों गोकुल से बाहर भेजने की परम्परा नहीं थी चूँकि कि पुत्री को दुहिता कहा गया है अर्थात गाय दुहने और गऊ सेवा करने वाली इसलिए बेटी गऊ की सेवा से वंचित हो जाती है और गायों की सेवा ब्रज जैसी होना बाहर कठिन है वृद्ध होने पर गायों को कटवा भी दिया जाता था जो ब्रज में संभव नहीं था ब्रजहिं छोड़ बैकुंठउ न जइहों ब्रज को छोड़ कर स्वर्ग के आनंद भोगने का मन भी नहीं होता मानुस हों तो वही रसखान बसों ब्रज गोकुल गाँव की ग्वारन इस प्रकार के अनेक उदाहरण हैं जो ब्रज को अद्भुत बनाते हैं ब्रज के संतों ने और ब्रजवासियों ने तो कभी मोक्ष की कामना भी नहीं की क्योंकि ब्रज में इह लीला के समाप्त होने पर ब्रजवासी ब्रज में ही वृक्ष का रूप धारण करता है अर्थात ब्रजवासी मृत्यु के पश्चात स्वर्गवासी न होकर ब्रजवासी ही रहता है और यह क्रम अनन्त काल से चल रहा है ऐसी मान्यता है ब्रज की तथ्य आस्था मिथक अस्त्र शस्त्र आरती आर्यावर्त इन्द्र उद्धव उपनयन कृष्ण क्षत्रप गणेश गोपी यमुना के घाट युग रासलीला वृष्णि संघ संवत संसार में एक कृष्ण ही हुआ जिसने दर्शन को गीत बनाया डा राम मनोहर लोहिया ब्रज शब्द से अभिप्राय ब्रज शब्द से अभिप्राय सामान्यत मथुरा ज़िला और उसके आस पास का क्षेत्र समझा जाता है वैदिक साहित्य में ब्रज शब्द का प्रयोग प्राय पशुओं के समूह उनके चारागाह चरने के स्थान या उनके बाडे़ के अर्थ में है रामायण महाभारत और समकालीन संस्कृत साहित्य में सामान्यत यही अर्थ ब्रज का संदर्भ है स्थान के अर्थ में ब्रज शब्द का उपयोग पुराणों में गाहे बगाहे आया है विद्वान मानते हैं कि यह गोकुल के लिये प्रयुक्त है ब्रज शब्द का चलन भक्ति आंदोलन के दौरान पूरे चरम पर पहुँच गया चौदहवीं शताब्दी की कृष्ण भक्ति की व्यापक लहर ने ब्रज शब्द की पवित्रता को जन जन में पूर्ण रूप से प्रचारित कर दिया सूर मीरां मीरा तुलसीदास रसखान के भजन तो जैसे आज भी ब्रज के वातावरण में गूंजते रहते हैं कृष्ण भक्ति में ऐसा क्या है जिसने मीरां मीरा से राज पाट छुड़वा दिया और सूर की रचनाओं की गहराई को जानकर विश्व भर में इस विषय पर ही शोध होता रहा कि सूर वास्तव में दृष्टिहीन थे भी या नहीं संगीत विशेषज्ञ मानते हैं कि ब्रज में सोलह हज़ार राग रागनिंयों का निर्माण हुआ था जिन्हें कृष्ण की रानियाँ भी कहा जाता है ब्रज में ही स्वामी हरिदास का जीवन एक ही वस्त्र और एक मिट्टी का करवा नियम पालन में बीता और इनका गायन सुनने के लिए राजा महाराजा भी कुटिया के द्वार पर आसन जमाए घन्टों बैठे रहते थे बैजूबावरा तानसेन नायक बख़्शू ध्रुपद धमार जैसे अमर संगीतकारों ने संगीत की सेवा ब्रज में रहकर ही की थी अष्टछाप कवियों के अलावा बिहारी अमीर ख़ुसरो भूषण घनानन्द आदि ब्रज भाषा के कवि साहित्य में अमर हैं ब्रज भाषा के साहित्यिक प्रयोग के उदाहरण महाराष्ट्र में तेरहवीं शती में मिलते हैं बाद में उन्नीसवीं शती तक गुजरात असम मणिपुर केरल तक भी साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ ब्रज भाषा के प्रयोग के बिना शास्त्रीय गायन की कल्पना करना भी असंभव है आज भी फ़िल्मों के गीतों में मधुरता लाने के लिए ब्रज भाषा का ही प्रयोग होता है सूक्ति और विचार जब तक जीना तब तक सीखना अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है स्वामी विवेकानन्द यह मनुष्य अन्तकाल में जिस जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है वह उस उस को ही प्राप्त होता हैं क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है श्रीमद्भागवत गीता इतिहास याने अनादिकाल से अब तक का सारा जीवन पुराण याने अनादि काल से अब तक टिका हुआ अनुभव का अमर अंश विनोबा भावे ईमानदारी और बुद्धिमानी के साथ किया हुआ काम कभी व्यर्थ नहीं जाता हज़ारी प्रसाद द्विवेदी पृथ्वी में कुआं जितना ही गहरा खुदेगा उतना ही अधिक जल निकलेगा वैसे ही मानव की जितनी अधिक शिक्षा होगी उतनी ही तीव्र बुद्धि बनेगी तिरुवल्लुवर तिरुक्कुरल 396 मैं नहीं चाहता कि मेरे लिए कोई स्मारक बनवाया जाये या मेरी प्रतिमा खड़ी की जाये मेरी कामना केवल यही है कि लोग देश से प्रेम करते रहें और आवश्यकता पड़ने पर उसके लिए प्राण भी न्यौछावर कर दें गोपालकृष्ण गोखले और पढ़ें कथा कहानी और कविता कच देवयानी गंगावतरण यम द्वितीया ययाति रश्मिरथी तृतीय सर्ग रुक्मिणी वराह अवतार की कथा शर्मिष्ठा शिव अर्जुन युद्ध सती शिव की कथा सत्यकाम जाबाल समुद्र मंथन सहस्त्रबाहु और परशुराम सावित्री सत्यवान ॠषभदेव का त्याग दर्शन और कला कुछ लेख चाणक्य चौंसठ कलाएँ छान्दोग्य उपनिषद तानसेन नृत्य नाट्य कला पतंजलि बैजूबावरा मूर्ति कला हरिदास पर्व उत्सव त्योहार कृष्ण जन्माष्टमी अक्षय तृतीया पुरुषोत्तम या अधिक मास बैसाखी महावीर जयन्ती रामनवमी यमुना षष्ठी नवरात्र गणगौर झूलेलाल जयन्ती सोमवती अमावस्या होली बसंत पंचमी कुम्भ मेला मकर संक्राति आर्य समाज सम्मेलन 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कृष्ण के समय से पहले ही मथुरा में एक प्रकार की प्रजातांत्रिक व्यवस्था थी अंधक और वृष्णि दो संघ परोक्ष मतदान प्रक्रिया से अपना मुखिया चुनते थे उग्रसेन अंधक संघ के मुखिया थे जिनका पुत्र कंस एक निरंकुश शासक बनना चाहता था अक्रूर ने कृष्ण से कंस का वध करवा कर प्रजातंत्र की रक्षा करवाई वृष्णि संघ के होने के कारण द्वारका के राजा कृष्ण बने दूसरे उदाहरण में बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार बुद्ध ने मथुरा आगमन पर अपने शिष्य आनन्द से मथुरा के संबंध में कहा है कि यह आदि राज्य है जिसने अपने लिए राजा महासम्मत चुना था इतिहास क्रम महाभारत काल मौर्य शुंग शक गुप्त हूण हर्षवर्धन राजपूत ग़ुलाम वंश ख़िलजी तुग़लक लोदी शेरशाह हेमू मुग़ल जाट और अंग्रेज़ शासन काल में मथुरा अनेक स्थितियों में महत्वपूर्ण बना रहा शूरसेन नगरी सौर्यपुर मधुपुरी मदुरा आदि सब नाम मथुरा के ही लिए प्रयुक्त हुए विदेशी यात्रियों ने कभी मो तु लो मोरों के नाचने का स्थान लिखा तो कभी मेथोरा औरंगज़ेब ने मथुरा का नाम बदल कर इस्लामाबाद कर दिया तो अंग्रेजों ने मुट्रा ध्रुव गौतम बुद्ध तीर्थंकर पार्श्वनाथ महावीर शंकराचार्य चैतन्य महाप्रभु गुरु नानक सलीम 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